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अ॒भि त्वा॑ शूर नोनु॒मोऽदु॑ग्धाइव धे॒नवः॑। ईशा॑नम॒स्य जग॑तः स्व॒र्दृश॒मीशा॑नमिन्द्र त॒स्थुषः॑ ॥२२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

abhi tvā śūra nonumo dugdhā iva dhenavaḥ | īśānam asya jagataḥ svardṛśam īśānam indra tasthuṣaḥ ||

पद पाठ

अ॒भि। त्वा॒। शू॒र॒। नो॒नु॒मः॒। अदु॑ग्धाःऽइव। धे॒नवः॑। ईशा॑नम्। अ॒स्य। जग॑तः। स्वः॒ऽदृश॑म्। ईशा॑नम्। इ॒न्द्र॒। त॒स्थुषः॑ ॥२२॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:32» मन्त्र:22 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:21» मन्त्र:2 | मण्डल:7» अनुवाक:2» मन्त्र:22


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर इस जगत् का स्वामी कौन है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शूर) पापाचरणों के हिंसक (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त परमात्मा ! (अस्य) इस (जगतः) जङ्गम के (ईशानम्) चेष्टा कराने और (तस्थुषः) स्थावर संसार के (ईशानम्) निर्माण करनेवाले (त्वा) आपको (स्वर्दृशम्) सुखपूर्वक देखने को (धेनवः) गौवें (अदुग्धाइव) दूधरहित हों जैसे, वैसे हम लोग (अभि, नोनुमः) सब ओर से निरन्तर नमते प्रणाम करते हैं ॥२२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्य ! यदि निरन्तर सुखेच्छा हो तो परमात्मा ही की आप लोग उपासना करें ॥२२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरस्य जगतः कः स्वामीत्याह ॥

अन्वय:

हे शूरेन्द्र परमात्मन्नस्य जगत ईशानमस्य तस्थुष ईशानं त्वा त्वां स्वर्दृशं धेनवोऽदुग्धा इव वयमभि नोनुमः ॥२२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (न) (अभि) (त्वा) त्वाम् (शूर) पापाचाराणां हिंसकः (नोनुमः) भृशं नमामः (अदुग्धाइव) दुग्धरहिता इव (धेनवः) गावः (ईशानम्) ईषणशीलम् (अस्य) (जगतः) संसारस्य (स्वर्दृशम्) सुखं द्रष्टुम् (ईशानम्) निर्मातारम् (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (तस्थुषः) स्थावरस्य ॥२२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! यदि सततं सुखेच्छा स्यात्तर्हि परमात्मानमेव भवन्त उपासीरन् ॥२२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जर निरंतर सुखाची इच्छा असेल तर परमात्म्याचीच तुम्ही उपासना करा. ॥ २२ ॥